सुख की तलाश में – In quest of Happiness
ए आर सरकार
दूर खड़े पेड़ों के पीछे छुप छुप कर डूबता हुआ सूरज को निहारती हुई अनचाहे अपने सुदूर अतीत के भूले बिसरे पलों को वापस खींच लाई साध्वी उपासना देवी। हालांकि, थोड़ी ही देर पहले वे अपने इस आश्रम में प्रवचन करते समय कह रही थीं कि मनुष्य को अतीत को भुला कर वर्तमान में जीना चाहिए, यदि वह दुःख से मुक्त होना चाहता है। क्योंकि अतीत का परोक्ष अर्थ दुःख ही है। अतीत अगर दुःख से भरा हुआ था तो उसे सोच कर मन दुःखी होता है और अतीत अगर अधिक सुखमय था तो भी उसे याद करके मन दुःखी होता है कारण बर्तमान सुख अतीत की तुलना में कम पड़ जाता है। लेकिन क्या वाकई अतीत को भूलना संभव है? क्या समाज बार-बार आंखों के सामने आईना नहीं रखता है?
“हम रेडी हैं मैडम। आप बोलिये।” मीडिया के एक शख्स ने उपासना देवी की स्मृतिचारण में खलल डाल दिया। “बचपन से लेकर आज तक जो कुछ भी याद आये, सब बोलिये। घटनाक्रम आगे पीछे हो जाए तो भी कोई बात नहीं।”
उपासना देवी काफी समय से मीडिया से परहेज कर रही थीं। लेकिन आज, एक स्थानीय गणमान्य व्यक्ति के अनुरोध पर वे ‘ना’ नहीं कह सकीं।
बहुत सारे कैमरे चल रहे हैं। आश्रम के बगीचे के एक कोने में उपासना देवी के सामने रखी मेज पर बहुत सारे माइक रखे हुए हैं। बीच में कोई रुकावट न आए इसलिए उन्होंने पहले से ही लाइटें जला रखी हैं।
शांत चेहरे, उज्ज्वल आँखों और स्थिर अभिव्यक्ति के साथ, उपासना देवी ने अपनी जीवन कहानी को कभी रुक रुक कर तो कभी बिना रुके सुनाती चली गयी। उपस्थित लोगों में से कइयों की आखों में कई बार आसूं आये लेकिन उपासना देवी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में ज़रा भी विचलित नहीं हुई।
अगले दिन लगभग सभी टीवी चैनलों ने अपने विशेष कार्यक्रमों में विज्ञापनों से पहले और बाद में उपासना देवी की मार्मिक कहानी के कुछ खास अंश घुमा फिरा कर अलग-अलग तरीके से दिखाए तो थे, लेकिन कुछ अखबारों ने अपनी खास कहानी के पृष्ठ पर उपासना देवी की सुनाई हुई लगभग पूरी कहानी छाप दी थी।
उपासना देवी का असली नाम था निर्मल कौर । जाति में उच्च वर्ण की ‘सिख’ थी वह। शिक्षा में एक आम ग्रेजुएट निर्मल का बचपन बहुत लाड प्यार से बीता। फिर आज से 27 साल पहले अपने माता-पिता की इकलौती संतान 25 साल पार किया निर्मल ने अपना हरियाणा का घर छोड़ कर काफ़ी पैसे लेकर बम्बई आ गयी थी हीरोइन बनने के लिए। उस समय बहुत से लोग ऐसे ही आते थे और आज भी आते हैं।
बम्बई पहुंचते ही एक सहेली के मार्फत निर्मल की मुलाकात एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से हुई। निर्मल को बताया गया की वह बड़ी बड़ी फिल्म कंपनियों में कास्टिंग का काम करता है। उन्होंने कई लड़कों और लड़कियों को काम दिला दिया है। उनमें से कई तो छोटे बजट की फिल्मों में हीरो और हीरोइन भी बन गए हैं। उसने तो सी ग्रेड की एडल्ट फिल्मों के कई नाम भी गिनवा दिए। एक बड़ी सी एल्बम खोल कर कई लड़कियों की हॉट तस्वीरें और तरोड मरोड़ किया हुआ एक पुरानी मैगज़ीन से कुछ मूवी पोस्टर भी दिखाए। Google और मोबाइल फोन तो तब थे नहीं, इसलिए उन्ही चीज़ों को देख कर काफ़ी विश्वास हो जाया करता था। तो निर्मल के साथ भी वैसा ही हुआ। वह खुशी और उत्साह से बोल पड़ी,"तो फिर मुझे मौका मिल जायेगा ?" "हां बिल्कुल। पर," "पर क्या?" "इस तरह की कुछ तस्वीरें खींचवानी होगी और एक छोटी सी एल्बम बनाकर मुझे देनी होगी।" "मैं इतनी खुलकर तस्वीरें नहीं खींचवा सकती।" “फिर तो एक नार्मल फोटो सेशन करवाना होगा। एल्बम समेत 5,000 रुपये लगेगा।” "पांच ह-जा-र! सत्तर अस्सी रुपये में तो तस्बीरें बन जाती हैं - शायद। " वह सब नहीं चलेगा। कॉस्ट्यूम और मेकअप चाहिए। प्रोफेशनल फोटो।” " अच्छा। तब दूंगी मैं - पांच - हजार। ” कुछ पल सोचने के बाद हिचकिचाती हुई बोली निर्मल। इसके बाद की घटना तो निर्मल के लिए और भी हैरान करने वाली थी। फोटो सेशन के दौरान उसके कान में दो बातें डाली गयी। एक - लड़कों में कितना भी टैलेंट हो, सीधा हीरो बनने के लिए उन्हें काफ़ी रकम खर्चनी पड़ती है। दो - लड़कियों के मामले में या तो उन्हें 'कोम्प्रोमाईज़' करना होता है या फिर उतनी ही रकम खर्चनी होती है जितनी लड़के लोग खर्चते हैं। बेशक आज भी वही हो रहा है, लेकिन 'मी टू' के आने के बाद से खुलेआम नहीं - गुपचुप तरीके से। कहने की जरूरत नहीं है कि आज की लड़कियां पहले से ज्यादा 'स्मार्ट' हैं और उनमें से ज्यादातर 'देने और लेने' की बातों को बेहतर समझती हैं। इसलिए फिल्म, टीवी, कॉरपोरेट हर जगह 'गिव एंड टेक' चल रहा है। न चाहने से भी अगर बारिश आ जाये, तो थोड़ा भीगने का मज़ा लेने में हर्ज़ ही क्या है? मसलन तुम नहीं तो हज़ार खड़ी हैं तुम्हारे पीछे। बड़ी जगह पहुंचने के बाद तुम ही तो बोलोगी - मैंने कभी भी कोम्प्रोमाईज़ नहीं किया, अपने टैलेंट दिखा कर यहाँ तक पहुंची। तब तुम ही तो दूसरों के लिए आदर्शबादी बनोगी। जब समाज ही बदल रहा है, व्यवस्था तो बदलेगी ही।
कोम्प्रोमाईज़ करने में नाराज़, निर्मल ने नायिका बनने की अदम्य इच्छा पर अपने खर्च के लिए थोड़े पैसे छोड़कर बाकी के सारे पैसे उस आदमी को सौंप दिया। उस आदमी ने कम पैसे होने पर भी निश्चित रूप से काम दिलाने का वादा करके निर्मल से विदा ली थी। बाद में निर्मल उसे फिर कभी नहीं देख पायी। जिस ऑफिस को दिखा कर उसने पैसे लिए थे, वहां जाने पर उन्होंने कहा, “कई लोग इस तरह लड़के-लड़कियों के फोटो एलबम लाते हैं। हम किसीका कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं।”
“लेकिन आप के ऑफिस के लोगों में से किसी एक ने कहा था मुझे काम देंगे। हीरोइन का रोल। वह तो खुद को डायरेक्टर बोल रहे थे।” विह्वलता का सुर था निर्मल के गले में।
“हीरोइन का रोल! हा हा हा। आप को? बॉम्बे में अचानक हीरोइन की कमी आ गयी क्या? देखिए, यहां दिन भर काफी लोग आते जाते हैं। अगर कोई बाहर खड़े होकर कहे कि ‘यह ऑफिस मेरा है, मैं डायरेक्टर हूं’, तो क्या आप को यकीन कर लेनी चाहिए? … हम आपकी स्थिति को समझ पा रहे हैं। आप पुलिस के पास जा सकती हैं। जाइये अब प्लीज। धन्यवाद।”
निर्मल जान गयी थी कि पुलिस के पास जाने से कोई फायदा नहीं होगा। उसकी सहेली ने भी वही समझाया।
स्नानाहार बंद कर के बिस्तर पे लेटे लेटे सिर्फ रोई थी निर्मल पूरा एक दिन।
रात के बाद जैसे भोर, दुःख के बाद वैसे सुख।
दो बेला दो ग्रास खा कर पुराने कपड़ों में शेयरिंग फ्लैट में रह कर निर्मल जब फिल्मों के ऑफिस में घूम घूम कर संघर्ष कर रही थी तब उसकी ज़िन्दगी में आया एक पुरुष। सुरेश श्रीवास्तव। टीवी और फिल्मों में छोटे छोटे काम कर के अच्छा पैसा कमाता था और छोटा सा एक फ्लैट में आज़ादी से रहता था वह। पहले तो सुरेश ने पैसे दे कर निर्मल की मदद की। बाद में बहुत ही शालीनता से बुलाने पर निर्मल उसके फ्लैट में आने जाने लगी। बहुत छोटे छोटे एक्टिंग के कुछ काम भी दिलवा दिया उसे सुरेश ने। निर्मल के दिल में सुरेश को जगह मिल गई। फिर, एक आवेगपूर्ण शाम में बिश्वास की गहराईयों में अपने आप को सौंप दिया निर्मल ने उस के बाहुपाश में।
लगभग एक महीने बाद, ऑडिशन दे कर जिस दिन एक टीवी शो में अच्छा रोल मिला निर्मल को, ठीक उसी दिन उसे पता चला कि उसके शरीर के अंदर एक और प्राण आ गया है। ख़ुशी और गम दोनों का एहसास एकसाथ होने लगा निर्मल को। और समाज?
“हाँ, इसीलिए तो बोल रहा हूँ। एबॉर्शन करा लो। दस दिन बाद है शूटिंग। तब तक बिलकुल ठीक हो जाओगी। ऐसा मौका बार-बार नहीं आएगा।” बिना किसी हिचकिचाहट के सुरेश ने अपना पहलु रखा।
आम तौर पर मन में बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा हो तो लोग छोटी छोटी प्राप्तियों को हिसाब में नहीं लाना चाहते हैं। इसलिए बिलकुल असंगत रूप से निर्मल को ऐसा लगा की गुलाब के पौधे को बचाने के लिए परगाछा को निकालना ही ठीक रहेगा।
लेकिन किसकी नियति में क्या लिखा था?
एबॉर्शन के बाद निर्मल को खबर मिली कि टीवी शो कैंसिल कर दिया गया है। अब कोई शूटिंग नहीं होगी।
सुरेश अब निर्मल की ज़िंदगी से जा चूका है। लेकिन फिर भी निर्मल का जीवन जैसे ग्लानि से भर गया।
ऐसे में अभीक बजाज आ कर खड़ा हुआ निर्मल के पास। दोनों में थोड़ी सी परिचिति पहले से ही थी। निर्मल सारे गम और ग्लानि भुलाकर फिर से सुख की तलाश में जुट गई। अच्छा लगना , प्यार होना और शादी, जैसे एक मायावी सांप की तरह सर सर कर रेंगता हुआ निर्मल की सुख की झोली में घुस आया।
बॉम्बे तब ‘मुंबई’ हो गया था। पेजर और मोबाइल फोन चलने लगे थे। हालांकि मोबाइल फोन तब बहुत महंगा था फिर भी अभीक ने एक फोन खरीद लिया। निर्मल को ठीक से याद तो नहीं, लेकिन उस की कीमत बहुत थी। तब तो फोन का किराया यानि रेंटल चार्जे देना पड़ता था। कॉल सुनने का भी काफी पैसे लगते थे; करने का तो बहुत ज्यादा। वैसे फ़ोन खरीद ने से पहले निर्मल ने एक बार हल्के से ‘ना’ कहा तो था, लेकिन उसे खुद पर ही बहुत गर्व हो रहा था कि उसका पति मोबाइल फोन खरीदेगा। उस समय मोबाईल फ़ोन रखना बहुत बड़ी स्टेटस की बात थी।
नए नाम के महिमा मंडित इस पुराने शहर में निर्मल बजाज के दिन अच्छे ही बीतने लगे थे। अपने नाम के पीछे यह ‘बजाज’ सरनेम अब काफी भारी भरकम लगने लगा था गर्भवती निर्मल को। लड़का हुआ तो हर जगह सम्मान मिलेगा – लड़की हुई तो भी – स्कूल में, कॉलेज में – हर जगह। लेकिन होगा क्या ? लड़का या लड़की?
भाग्य ने उसे एक लड़का ही दिया। चेहरा काफी हद तक निर्मल जैसा ही था। ख़ुशी से दिल जब भरने लगा निर्मल का ठीक तभी अभीक बजाज ने अपना कदम बढ़ा दिया किसी दूसरे रस्ते पर। एक्टिंग में खलनायक की भूमिका निभाते निभाते शायद खुद को भी उसी सांचे में ढाल लिया था उसने। ख़ैर मनोविज्ञान इस तर्क का समर्थन करता है।
रोज रात को शराब पीकर बेवजह बहस करने लगता था अभीक। बीच बीच में एक एक रात नई नई लड़कियां शराब पीकर उसको घर पहुंचाने आ जाती थीं। उसकी कमाई कहां जा रही थी निर्मल को कुछ समझ नहीं आ रहा था। धीरे-धीरे मोबाईल फोन गया , गाड़ी गई - बड़े फ्लैट से छोटे फ्लैट में आ गए - बच्चे के दूध के पैसे भी कम पड़ने लगे। आखिर में अभीक की एक्टिंग का काम भी छूट गया और वह घर पर ही एक्टिंग करने लगा।
निर्मल में अब और धैर्य नहीं रहा। बेटा उसकी जान है। वह सोच नहीं पा रही थी कि उसके लिए क्या करे क्या न करे उतने में एक रात अभीक एक लड़की को लेकर आया और अचानक बोल दिया कि वह उससे शादी करना चाहता है। नहीं- उस रात निर्मल को ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ था।
बेटे के तरफ देखते हुए उदास मन से अगले ही दिन निर्मल ने तलाक के कागज पर दस्तखत कर दिए। अपनी आत्म-सम्मान को बनाए रखते हुए बिना किसी पैसे की मांग किए और कोर्ट के आर्डर का इंतज़ार किये बिना सिर्फ अपने बेटे को लेकर ही अलग हो गई थी निर्मल।
अपनी बेटी की इस दुर्दशा में अब की बार निर्मल के साथ आ कर खड़ी हो गई खुद निर्मल की मां। उसके पिता भी आए थे लेकिन थोड़े ही दिन रहने के बाद वह अपनी बेटी के हाथ में कुछ पैसे दे कर बेटी के छोटे से किराए के फ्लैट छोड़ अपने घर लौट गए थे।
नाती को नानी के पास छोड़कर निर्मल अब एक-दो दिन की शूटिंग के लिए जा सकती थीं। नदी के ज्वार और भाटे के बीच के ठैराव की तरह थे निर्मल के ये सब दिन। न सुख न दुःख। लेकिन घर वापसी में जब वह अपने बेटे को गोद में लेती और अपनी मां को देखती तब उसे लगता कि उसे जीवन में और कुछ नहीं चाहिए। बस यही काफी है।
लेकिन किस्मत ने तो उसके लिए और भी बहुत कुछ लिखा था। शायद ढेर सारी खुशियाँ या और भी बहुत कुछ।
करीब तीन महीने के बाद केवल दो दिनों की मुलाकात से ही निर्मल और उसकी माँ के दिल जीत लिया था उत्तर बंगाल में पैदा हुए, पले-बड़े बहुत गोरा, सुन्दर काया, हाल ही में चालीस पार किया हुआ गैर शादीशुदा मुंबई के एक प्रवासी बंगाली बिजनेसमैन अनिन्द कांजीलाल ने। अनिन्द ने ही पहल की थी जान पहचान बढ़ाने में निर्मल के शूटिंग ब्रेक के दौरान। वह निर्मल की सुंदरता पर मोहित हो गया था। आबेग में उसने निर्मल के बेटे को नए पिता का नाम देने का वादा भी कर दिया था।
मेलजोल तेज़ी से इतनी आगे बढ़ गया था कि निर्मल की माँ ने उसे अनिन्द को सौंप कर अपने पति के अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने घर चली गई। बहुत ही शांत नन्हा सा बच्चा नानी की गोद से अपनी माँ की गोद में आ कर एक बार नानी को तो एक बार अपने होनेवाले पिता को टुकुर टुकुर देखता रहा। वह छोटा बच्चा नानी के आंसुओं की भाषा कैसे समझ सकता था? और कैसे समझ पाता कि नए पिता की मीठी मुस्कान की गहराई में कठोरता और नफरत का विशाल भंडार छुपा हुआ है या नहीं?
हमारे समाज में, एक स्त्री एक पुरुष का साथ चाहती है। बाहरी कारण जो भी हो, लगभग हर जगह शरीर ही निश्चित रूप से एकमात्र आंतरिक कारण है। विज्ञान की भाषा में ‘हार्मोन’ कहना बिलुकल भी गलत नहीं होगा। और पुरुष? उसके बारे में क्या? हार्मोन उसका कहाँ ठोकर खा कर गिर जाता है? प्रत्येक ‘प्राप्ति’ के बाद उसका ‘अहम् ‘ जाग उठता है ‘अभिमान’ और ‘अहंकार’ के साथ। अहंकार घृणा को जन्म देता है और घृणा जन्म देती है अदम्य क्रोध को । और क्रोधाग्नि दावानल से भी भयानक होती है। सम्पूर्ण जीवन, परिवार और समाज को जला सकती है। जला ‘सकती’ नहीं, जला देती है।
ऐसा ही हुआ निर्मल के मामले में। कुछ महीने निर्मल को बिस्तर-साथी के रूप में पाने के बाद, अनिन्द कांजीलाल का ‘अहम्’ जाग गया। उसे लगा कि उसने निर्मल को तो केवल आश्रय दिया है। ‘अनिन्द कांजीलाल’ के पास तो ऐसी कई अभिनेत्रियां आती जाती हैं। उनका भी कोई चरित्र है क्या? यह बच्चा है किसका? क्या निर्मल को खुद को पता भी है कि उसके बच्चे का असली बाप कौन है?
रोज झगड़ा, हाथापाई और फिर थोड़ा-सा नकली प्यार कुछ और दिनों तक चलता रहा। फिर निर्मल की सुख की नाव उसके दुःख के सागर के कराल ग्रास से मुक्त नहीं हो पाई।
एक रात अनिन्द शराब के नशे में बेरहमी से निर्मल को बेल्ट से पीटने लगा। बिस्तर की चादर पर अचानक झटके से खींच पड़ने के कारण बुखार से नींद में कराहता हुआ निर्मल का नन्हा सा बच्चा छिटक कर जा गिरा बगल के टूटे हुए लाइट स्टैंड पर। और तब नशे में धुत अनिन्द-रूपी उन्मत्त पशु की दहाड़ और निरपराध कमजोर असहाय निर्मल की कराह के बीच सुनाई दी उस नन्हे बच्चे की हल्की सी एक दर्दनाक चीख। फिर एक सम्पूर्ण निस्तब्धता। सब ख़त्म।
* * *
आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी निर्मल को अविवाहित व्यक्ति के साथ रह कर उसकी बेरहमी से हत्या करने के आरोप में।
जेल के अंदर निर्मल दिन भर गहरे ध्यान में डूबी रहती थी। धीरे धीरे उसने कामना और प्राप्ति के हिसाब किताब को शुन्य कर लिया था। स्वामी विवेकानंद की रचनाओं को बार-बार पढ़ने के बाद उसके लिए सुख-दुःख, मान-अपमान सब एक हो गया था। क्रोध, लोभ, मोह सहित सभी रिपु उसके तन और मन से बहुत परे चले गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे कि निर्मल कौर की प्रत्यक्ष रूप से मौत हो गई हो और जैसे किसी और शांत आत्मा ने उसके शरीर पर कब्जा कर लिया हो। करीब पांच साल बाद सभी ने उसे ‘उपासना देवी’ का नाम दे दिया था। उस के बहुत से शिष्य भी बन गए थे। उसने कई अपराधियों को ठीक भी कर दिया था।
रिहा होने से पहले, निर्मल ने जेल की कोठरी और कैदियों की दुनिया से बाहर की दुनिया को केवल दो ही बार देखा था। एक बार पिता की अकाल मृत्यु पर और दूसरी बार दो साल बाद माँ की मौत पर। मां की चिता पर ही थे आखिरी आंसू उसके।
14 साल की सजा काटने के बाद, एक नया जीवन, शुद्ध शरीर और मन के साथ जेल से रिहा हुई आज की उपासना देवी।
लेकिन हमारे देश का नाम ‘भारत’ है। ढेर सारे सवाल, ढेर सारे कमेंट। जैसे हम आलोचना के अलावा और कुछ भी नहीं जानते। हम भूल चुके हैं रामायण के रत्नाकर और गौतम बुद्ध के अंगुलिमाल की कहानी को। हमें सब की परीक्षा चाहिए। सम्पूर्ण प्रमाण चाहिए।
इसलिए उपासना देवी ने मीडिया के सामने सब कुछ कह दिया। देशवासियों के ज्ञांत-अज्ञात सब कुछ। उनका कोई गुरु नहीं है लेकिन वे स्वामी विवेकानंद को ही एक सच्चा गुरु मानती हैं। लेकिन फिर भी वे किसी और के प्रति श्रद्धाहीन भी नहीं हैं।
उन की विशेष वाणी क्या है पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “मैं स्वामी विवेकानंद की बातों को ही अपनी भाषा में कहूँगी – सुख के बाद आता है दुःख, उस के बाद फिर सुख; वे एक दूसरे का अनुसरण करते हैं। हम जो चाहते हैं वो केवल सुख ही है, दुःख कभी नहीं। यह हम भूल जाते हैं की हमारा मन सुख-दुःख की जंजीरों से बंधा हुआ है। और ये सुख और दुःख केवल हमारी अनुभूति मात्र है। ये दोनों को एक जैसा महसूस करने पर हमे और कोई कष्ट की अनुभूति नहीं होगी।”
“क्या आप का कोई मंत्र है?”
“हाँ, है। बहुत सरल। लेकिन उसे मंत्र कहना सही नहीं होगा। यह एक चेतना है। ‘सद्चिन्तन’ ‘सद्बुद्धि’ ‘सत्कर्म’। मन में जो ‘विचार’ आता है, अर्थात् ‘धारणा ‘ वह शुद्ध हो, और जो बुद्धि उस ‘विचार’ को क्रिया में बदलने के लिए आवश्यक है वह शुद्ध हो, और उस बुद्धि के द्वारा किए गए सभी कार्य ‘सत्कर्म’ अर्थात शुद्ध हो। फिर जीवन में कभी दु:ख नहीं होगा। ऐसा गौतम बुद्ध ने भी कहा है।”
सबके जाने के बाद उपासना देवी ध्यान में बैठ गईं। कहीं जैसे उनके मन के अंदर एक बहुत छोटा सा दाग रह गया था। आज वह भी मिट गया हमेशा के लिए।
-समाप्त-
Very touching. Very lucid style.
Sensitive and subtly emotional , no melodrama . Reminds me of Hrishikesh Mukherjee …. beauti ful ❤️
Thank you so much. I will bring you more like this.
So heart-touching and motivating
A ton of thanks. Wish you would read all of my creations.
Very inspiring story ,which I cannot tell ,
Thank you so much. I wish you would my other stories too.
What you are doing here is inspiring! Well done .
Loved the story. Very beautiful.
Thank you so much. Your wishes have brought me here.
Just WOW…Motivating and very touching story.
You inspiring me every time.
Thank you very much.
There is a lot of difference between reel(story) & real. Over all a good touching story.
Thank you.
यह कहानी वाकई दिल को छू लेने वाली है ❤❤❤❤
पढ़ते समय रोंगटे खड़े हो गए 😍😍😍😍
बहुत बहुत शुक्रिया।
हे माँ 🙏
सिनेमा जगत के लगभग एक भाग के सच्चाई को यह कहानी दर्शाता है। ये आपके सिनेमा उद्योग में मौजूदगी होने के एहसास भी कराता है।आपकी अंग्रेज़ी के साथ -साथ हिन्दी भाषा में भी उच्च दर्जे की पकड़ है। आपने इसे जिस तरह से कहानी के रूप में पिरोया है वो मुझे पिछले दिनो का एहसास करता है जब मैं बहुत सारे उपन्यास पढ़ता था,वही ख़ुशबू का एहसास मुझे आपके लेखनी ने कराया। बहुत ही मार्मिक कहानी है और साथ ही एक संदेश व आहवान भी आने वाले नये लड़कियों को सिनेमा जगत के लिए…
आप को बहुत बहुत धन्यबाद.
Iam also a girl and this story is so inspiring for me….
Thank you soooooo much for writing this type of inspiring stories